जाफ़र-क्रिकेट के सांप्रदायिकरण विवाद:देवभूमि पर धब्बे से मुख्यमंत्री नाखुश
पूर्व चयनकर्ता मनोज मुद्गल ने माहिम-अकरम सैफी पर चयन में दखल के आरोपों की पुष्टि की
चेतन गुरुंग

देहरादून। वासिम जाफ़र और क्रिकेट के सांप्रदायिकरण विवाद के चलते देवभूमि की नकारात्मक छवि देश भर में उभरने से मुख्यमंत्री नाखुश हैं। उन्होंने रविवार को क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड से जुड़े कुछ ओहदेदारों को तलब किया। उनसे वस्तुस्थिति पर रिपोर्ट ली। उम्मीद जताई जा रही है कि सरकार एसोसिएशन से जुड़े कुछ ऐसे गंभीर मसलों पर जांच बिठाने वाली है, जो उसके अधिकार क्षेत्र में है। अंदरखाने की खबर ये है कि राहुल गांधी के इस मुद्दे पर कूद पड़ने के बाद PMO भी सक्रिय हो गया है। CM को भी शायद ऊपर से इस बाबत कुछ ईशारे किए गए हैं। सीएयू ओहदेदारों में से एक ने `Newsspace’ से पुष्टि की कि मुख्यमंत्री उत्तराखंड क्रिकेट में चल रहे विवादों और प्रदेश की बदनामी से नाराज दिखे। उन्होंने साफ कहा कि अगर कोई लिखित या आधिकारिक शिकायत मिलती है तो सरकार इन सभी मामलों की निष्पक्ष जांच कराने को तैयार है।
मुख्यमंत्री से जो ओहदेदार मिले, उनमें सीएयू के उपाध्यक्ष संजय रावत, कोषाध्यक्ष पृथ्वी सिंह नेगी, संयुक्त सचिव अवनीश वर्मा और सदस्य रोहित चौहान शामिल थे। मुख्यमंत्री आवास में हुई इस बैठक में जाफ़र विवाद के साथ ही एसोसिएशन से मुताल्लिक अन्य उन विवादों पर भी मुख्यमंत्री ने जानकारी ली, जिससे प्रदेश का नाम और प्रतिष्ठा खराब हो रही है। खास बात ये है कि संजय-अवनीश और नेगी सीएयू के उन ओहदेदारों में शामिल हैं, जो हर गलत और अनैतिक फैसलों का एसोसिएशन और एपेक्स काउंसिल बैठक में खुल के विरोध करते हैं।
सीएयू सचिव माहिम वर्मा ने हाल ही में टीम के मुख्य प्रशिक्षक वासिम जाफ़र पर सांप्रदायिक होने के गंभीर आरोप लगा के देश भर में सनसनी मचा दी है। जाफ़र के इस्तीफे के बाद माहिम ने जुबान खोली। पूर्व भारतीय कप्तान अनिल कुंबले के बाद काँग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी ने इस मामले में ट्वीट कर मामले को और व्यापक स्वरूप दे दिया है। कुंबले समेत कई क्रिकेटरों ने जाफर के हक में बयान दे के माहिम के आरोपों की हवा निकाल दी है। राहुल के ट्वीट ने मामले को सियासी शक्ल दे दी।
उन्होंने अपने ट्वीट में एक किस्म से बीजेपी को घसीटते हुए आलोचना की कि जैसा हाल देश का चल रहा है, उसके चलते सबसे प्रिय खेल क्रिकेट भी नफरत की सियासत का शिकार हो गया है। मुख्यमंत्री ने जिस तरह अचानक सीएयू के ओहदेदारों को अचानक तलब किया, उसके पीछे राहुल के ट्वीट और बीजेपी आला कमान से मिले निर्देशों को देखा जा रहा है। बीजेपी नहीं चाहेगी कि क्रिकेट में सांप्रदायिकता की घुसपैठ के आरोप लगे। खास तौर पर ये देखते हुए कि बीसीसीआई के सचिव केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह हैं।
उत्तराखंड क्रिकेट में जो कुछ गोलमाल और सांप्रदायिकता के आरोप लगने से मुख्यमंत्री भी अछूते नहीं रह सकते हैं। उनकी यूनाइटेड क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड का समर्थन भी सीएयू को है। उपाध्यक्ष संजय उनके सगे भतीजे हैं। संयुक्त सचिव अवनीश वर्मा उनकी एसोसिएशन से ही हैं। जाफ़र ने सीएयू सचिव माहिम पर चयन में दखल देने समेत तमाम आरोप लगाते हुए इस्तीफा दिया था। उनके इस आरोप को आज और बल मिला। सीएयू के पूर्व चयनकर्ता और यूपी से रणजी ट्रॉफी खेल चुके मनोज मुद्गल ने `शाह टाइम्स’ से कहा कि उन्होंने भी चयन में दखल के चलते ही दो-दिन में ही दो साल पहले इस्तीफा दे दिया था।
उन्होंने माहिम के साथ ही सहारनपुर निवासी लेकिन बोर्ड उपाध्यक्ष और काँग्रेस नेता राजीव शुक्ला के करीबी माने जाने वाले अकरम सैफी पर आरोप लगाए कि वे उनके हिसाब से चयन चाहते थे। जो मुझे मंजूर नहीं था। मैंने उनकी मनमानी सहने के बजाए आत्म सम्मान और स्वाभिमान को तरजीह दे के इस्तीफा दे दिया। मुद्गल ने ये भी कहा कि माहिम की कोई हैसियत नहीं है। जो निर्देश अकरम से उनको मिलते हैं, उसी का पालन वह करने को बाध्य है। अकरम के ईशारे के बिना सीएयू में पत्ता नहीं हिलता है।
मुझसे माहिम ने अकरम का नाम लिए बिना कहा कि उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन तुम्हारे पीछे पड़ी हुई है। यूपीसीए का मतलब यूपी में अकरम होता है। उस पर राजीव शुक्ला की छत्र छाया है। वह शुक्ला का नाम ले के यूपी और उत्तराखंड में धौंस जमाता है। मैंने सीधे शुक्ला से बात कर ली थी। उन्होंने मुझसे कहा कि उन्होंने अकरम को अपनी तरफ से कोई अधिकार नहीं दिए हैं।