आप नेता जुगरान ने CBI जांच-श्वेत पत्र के मांग की:CaU में जबर्दस्त टूट-फूट
Chetan Gurung

वासिम जाफर के सांप्रदायिक होने के मामले ने Cricket Association Uttarakhand की कई पोल एक साथ खोल डाली। साथ ही देश भर की मीडिया का ध्यान इस जंगलराज वाली संस्था के क्रिया कलापों पर गया। इसके बाद जाफ़र मामले में CaU सचिव माहिम वर्मा तो घबरा गए कहें या फिर ऊपर का दबाव। उन्होंने अपने आरोपों को खुद ही झुठला दिया। जाफ़र को क्लीन चिट देने लगे हैं। इतनी उथल-पुथल को देख मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत खुद भी अब क्रिकेट में चल रहे खेल पर बारीक नजर रख रहे। सूत्रों के मुताबिक PMO के निर्देश पर इस विवाद की हकीकत जानने के लिए उन्होंने जांच बिठा दी है। सबसे अधिक हैरानी इस बात पर जताई जा रही कि BCCI और बीजेपी-काँग्रेस इतने बड़े मामले में मुंह में दही जमा के बैठी हैं।

इसकी वजह समझ में आती है। जिस माहिम के कारण बवाल मचा है, वह बोर्ड उपाध्यक्ष और काँग्रेस नेता राजीव शुक्ला के बेहद खासमखास माने जाते हैं। जब शुक्ला को बोर्ड में उपाध्यक्ष की कुर्सी अपने लिए घेर के रखनी थी तो माहिम को ही उत्तराखंड से बुला के उपाध्यक्ष बनाया गया था। एक उपनल के अनुबंधित श्रमिक को बोर्ड का उपाध्यक्ष बनाए जाने की खबर तब `Newsspace’ ने खूब लिखी थी। इसके बाद बोर्ड में खलबली मची। माहिम को 2 महीने में ही हटा दिया गया। वापिस उत्तराखंड भेज दिया गया। बोर्ड के इतिहास में शायद ही किसी ओहदेदार को बिना कोई कारण बताए इतनी जल्दी हटा दिया गया हो।

CaU में तमाम तरह के आरोप लगातार लगे हैं। चाहे स्टेडियम किराए पर लेना हो, चाहे किट के टेंडर हों, मोटी तनख्वाह पर मनमानी नियुक्तियाँ या फिर खिलाड़ियों के चयन। सभी को ले के कुछ न कुछ गंभीर आरोप लगते रहे हैं। मामला तूल तब पकड़ गया जब टीम के हेड कोच जाफ़र ने माहिम पर टीम चयन में दखल के आरोप लगा के इस्तीफा दे दिया। बदले में माहिम ने जाफ़र पर सनसनीखेज आरोप लगाए कि मैदान में वह नमाज पढ़ते थे। मौलवी बुलाते थे। ये सारे आरोप अब फुस्स हो चुके हैं। हालात ये है कि खुद माहिम इस मामले में बुरी तरह घिर चुके नजर आ रहे हैं। ये भी खुलासा हो चुका है कि पिच पर इससे पहले धार्मिक अनुष्ठान हो चुका है। इसके तस्वीरें `Newsspace’ के पास हैं। इस मामले में सरकार की जांच कुछ न कुछ ऐसे नतीजे जरूर देगी, जो हलचल मचा सकती हैं।
बोर्ड ने आज तक CaU से इस पूरे विवाद पर सफाई तक नहीं मांगी। काँग्रेस हो या बीजेपी, दोनों की इस मामले में घिग्घी बंधी हुई है। शुक्ला के कारण उत्तराखंड काँग्रेस कुछ भी बोलने या मुखर होने से बच रही। CaU के अध्यक्ष जोत सिंह गुनसोला का कॉंग्रेसी होना भी एक वजह है। बीजेपी शायद इसलिए मुंह खोलने से खौफ खा रही कि बोर्ड के सचिव जय शाह हैं। गृह मंत्री अमित शाह के पुत्र जय उत्तराखंड क्रिकेट के प्रभारी हैं। आम आदमी पार्टी के संघर्षशील नेता रवीद्र जुगरान जरूर Cau की कारस्तानियों पर खुल के सामने आए हैं। उन्होंने CaU से श्वेत पत्र जारी कर अब तक बोर्ड से मिले करोड़ों रुपए का हिसाब सार्वजनिक करने और बोर्ड तथा त्रिवेन्द्र सरकार से CaU पर लगे तमाम आरोपों की सीबीआई जांच कराने की मांग की है।
जुगरान ने कहा कि टीम में प्रतिभावान खिलाड़ियों को दरकिनार किया जा रहा। चयन में घूसख़ोरी के आरोप लग रहे हैं। CaU में ही अब मनमानियों के खिलाफ सदस्य भी सामने आ रहे हैं। पूर्व अध्यक्ष और संरक्षक पूर्व मंत्री हीरा सिंह बिष्ट CaU में हो रहे गलत कृत्यों पर आम सभा में खुल के बोल चुके हैं। खुद कोषाध्यक्ष पृथ्वी सिंह नेगी कई किस्म के भुगतान भारी दबाव के बावजूद करने से सिर्फ इसलिए मना कर चुके हैं कि उनके सामने बिल ही पेश नहीं किए जा रहे। सीधे भुगतान करने के आदेश हो रहे। संस्थापक सदस्य ओपी सूदी और सदस्य रोहित चौहान भी अब खुल के बोलने लगे हैं। सूदी-चौहान के अनुसार CaU में अब वर्मा लॉबी की तानाशाही और गलत-सलत फैसलों को ले के सदस्यों में असंतोष व्यापक हो चुका है। जिस तरह एक ही खानदान CaU को मनमाने ढंग से चला के उत्तराखंड क्रिकेट को तबाह कर रहा है, उससे बहुत सदस्य चिंतित हैं।
सरकार की तरफ से जांच के आदेश होने से भी Association में घबराहट का आलम है। कई सदस्य न सिर्फ 70 साल से अधिक हैं बल्कि कई तो सरकारी सेवाओं में हैं। कई अन्य खेल संघों में भी हैं। सिर्फ सोसाइटी एक्ट में ही CaU के फँसने की आशंका नहीं है। हितों के टकराव को ले के भी तमाम मामले तैयार हैं। एक ही शख्स कई कुर्सियों पर हैं। जिसका बेटा रणजी ट्रॉफी खेल रहा हो उसके ही पिता के स्टेडियम (तनुष एकेडमी) मोटे किराए पर लिए जा रहे। पिता खुद भी CaU में सदस्य है। जिस एकेडमी (अभिमन्यु क्रिकेट एकेडमी) में कैंप लगाए जा रहे उसके खिलाड़ियों को खूब टीम में लिया जाना भी CaU पर निशाना साधने का मौका दे रहा है। देहरादून का धीरज खरे नैनीताल का सचिव है। दीपक मेहरा कई कुर्सियों पर हैं। हल्द्वानी में अपनी ही एकेडमी भी चला रहे हैं।
गज़ब तो ये है कि CaU के Ethics Officer जस्टिस वीरेंद्र सिंह ही Ombudsman हैं। जस्टिस वीरेंद्र की बतौर Ethics ऑफिसर आचरण की शिकायत करनी हो तो उनके ही पास सुनवाई के लिए जाना पड़ेगा। ऐसी मिसाल और कहाँ मिलेगी। मनोनीत Apex काउंसिल सदस्य ज्ञानेन्द्र पांडे नियुक्ति के लिए प्रशिक्षकों-स्टाफ के इंटरव्यू भी ले रहे। वोट भी डाल रहे। दोनों सरकारी संस्थानों में नौकरी कर रहे हैं। पांडे तो यूपी टीम के मैनेजर भी हैं। दोनों मनोनीत सदस्यों पर CaU के आकाओं का हाथ है। जांच में ये सब खुलासे होने की उम्मीद है। CBI जांच भी इस मामले के हाई प्रोफाइल होने से बैठ जाए तो ताज्जुब नहीं होगा।