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जब आधारों पर शब्दों की वीणा सजाती है…

डॉ. आशु अग्रवाल

जब आधारों पर शब्दों की वीणा सजाती है
तो स्वयं श्री सरस्वती की वीणा की आशीष सी लगती है.

जब बोलते हैं तो हवा भी रुक जाती है,
सुनने के लिएउनको कायनात भी दो पल के लिए ठहर जाती है.

ज्ञान इतना की क्या कहें हम उनके वर्णन के लिए कौन सा शब्द चुने हम.

जो बात निकलती है उनके मुख से उनके ही रंग में रंग जाती है.

और फिर उस पर हर बात के अभिवादन में उत्कृष्ट श्लोक की रेड कारपेट बिछ जाती है.

कल सुना था शिव तांडव नदी के तीर पर लहरें भी स्वयं नाच उठी नदी के नीर पर.

जो ऐसे कनेक्ट कर दे धर्म एवं ज्ञान को विज्ञान से और जो है भी शब्द प्रतिशत सटीक गणनाओ के मान से.

फिर कैसे माने कि वह खाली है कंटेंट की अभिज्ञान से.

लबों पर जब भक्ति के गीतों के तराने आते हैं,
दोनों नेत्रों में स्वयं झड़ने से उतर आते हैं

ना अपना होश ना अपना ख्याल जो किसी के लिए बदल दे अपनी चेतना का आधार….
क्या कहे इस समर्पण को हम,

ईश्वर की इस सर्वश्रेष्ठ रचना के वर्णन के लिए कौन से शब्द रूप रुपी मोती चुने हम,

हां यह नहीं कहेंगे कि हम अथा ज्ञान है क्योंकि यह तो उसे परम शक्ति का अपमान है,

उसे प्रभु से भी यही यह प्रभु से भी कहीं ज्यादा जिनको सब कुछ है माना,

उनकी हर बात को शियोद्धार्य करना ही हमारा मान है,

बस यह कहना ही काफी होगा की बहुत ज्ञान है.
अब यही है प्रार्थना की जिसने है हमको सवार,
उनकी नजरों में हमारा मान रहे अपनी दोस्ती पर उनका सदैव अभिमान रहे,
और भगवान हमें हमेशा आपका ध्यान रहे.

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