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ऐसे बाबा ऐसे बाबा

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आयुष तिवारी –

शब्दपुष्प कुछ चढ़ा रहा हूं , देखो हम हैं कितने दीन l
बिलख बिलख सब कर रो लेते हैं, जल वियोग में जैसे मीन l

सन सन सन युग ये बदल रहा है,
पर क्या कर सकता है अवसाद अभी?
मेरी रक्षा करने को है, जब
बाबा की आवाज यहीं l

याचक देखो कितने आते,
टिड्डी दल सम इतने आते l
“दादा मेरी शादी कर दो “
त्रिपाठी भैया कितने आते l

अरे, दौड़ दौड़ कर देखो,
कितनों को झट उस पार कियाl
डूब रहे थे बीच नदी में,
देखो हाँथ खींच इस पार किया l

गुप्ता जी ने कुछ बोल दिया था,
देखो हम तुम रूठ गए थे I
अरे DP- बदली, कमेंट नहीं है l
देखो हम तो लोट गए थे l

काहिल -जाहिल हम हैं कब के
क्या क्या नहीं अपमान किया l
“सुबह हुई है उठो रे देबू”,
कैसे बाबा ने माफ़ किया था l

जन्मदिन है चौथा अब तो
‘पांच’ बरस का होगा लाल l
गरुड़ समान वो उड़ते आते
नमकीन लिए, हम हुए निहाल l

होली आयी, दिवाली आयी
क्या सैलाब लग जाता था l
“श्याम रे घनश्याम ‘ जब गाते
लब लब पानी बह जाता था l

“मक्कारी नहीं बर्दास्त है देखो ” घायल नाहर से गरज उठे l
विश्कर्मा से महल बनाते ,
चाहे बादल काले सब बरस पड़ें l

बूट लिकिंग करते हो देखो,
केवल कटाक्ष से टोक दिया l
आंखे देख तुम्हारी तुमको,
तर्जनी पर कैसे रोक दिया l

खून ऐसा जब रग में दौड़े
फिर बोलो क्यों रोयें हम?
‘अहम ब्रह्म’ अमर -अजर वो,
निर्भय हो कर सोएं हम l

अम्बर में कैसे बाबा मेरे
मस्त मस्त से घूम रहे l
सन सन सन सन ऊपर देखो
जैसे बादल हैं झूम रहे l
अब नहीं रोना है देखो
मौन मौन वो करते बात l
उड़ जाता हूं आंख मूंद मैं
जैसे उड़ता है फन- फन बाज l

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