कलयुग में अवतरित हुए फिर से विष्णु भगवान
माया देख कलयुग की व्याकुल हुए स्वयं भगवान
वेश बदल कलयुग का कंस संतों में था समा गया
अब वध करूँ मैं कैसे भगवान भक्तों से घबरा गया।
भटक भटक के प्रभु सुदामा के घर ठहर गए
बाल सखा से मिल कर कुछ पल को तो चहक गए
विचारों का संगम हुआ हुआ , दोनों चैन से सो गए
प्रातः काल उठे जब केशव तो जंजीरों से बंधे मिले।
मन ही मन देखो खूब हँसे फिर मधुसूदन
आहूत हुए महाभारत के अब साथ लड़ेंगे अर्जुन कर्ण ल्ल
मित्र के नेत्र से जो टपका आंसू , कांप उठा तो गोवर्धनl
आंख पोछ देखा वीरों ने तो खड़ा सामने था दुर्योधन।
“सारथी बने थे कृष्ण वहां जब टकराये थे धर्म अधर्म
आज बनूँगा सारथी मैं, और वार करेंगे अर्जुन कर्ण।”
असमंजस में फंसे पार्थ ने पूछा बोलो भ्राता दुर्योधन
नाश किया प्रभु ने आपका , तब भी प्रिय क्यों वो मधुसुदन।
सिंघनाद कर बोला कुरूपति
तुझे विराट रूप दिखलाया था
पर उससे पहले उस रूप का दर्शन इस सुयोधन ने पाया था।
(रश्मिरथी तृतीय सर्ग )
रोये फाल्गुनी दुर्योधन को लगा के निज हृदय से अपने l
परशुराम का आवाहन कर
कर्ण नें प्रकट किया वो धनुष विजय l
कहा चार पांडव छोड़ दिये थे , गद्दार एक न छोडूंगा।
टांकारा गांडीव भी – द्रोही रक्त की होली खेलूंगा।
उतरा फिर से रश्मिरथ
कलयुगी कलुषित धरा पर
खड़ी मिली एक गोपी सामने
बदली हुई सी सज धज कर
अर्जुन ने प्रणाम किया,
कर्ण ने भी नमन किया।
पर दुर्योधन ने तुरंत उस गोपी को कलयुग में पहचान लिया।
बोला दुर्योधन, इस अर्जुन के पास बैकुंठ का राज है
कर्ण हमारा मित्र , सुदामा से भी धनवान है।
तुरंत बोली गोपी ,
यहाँ सुदामा का राज है ।
थोड़ी दौलत मुझको दे दो , मेरा नाम कुछ और है।
स्तब्ध रह गए कौन्तेय कर्ण
यह भी कैसे झांसे हैं
बोला दुर्योधन यही कलयुग में शकुनि मामा के पासे हैं
घुसा रथ सुदामा के महल तभी आ गए सहस्त्र बलशाली।
पूछा अर्जुन ने सहसा ये तो हैं अद्भुत बलशाली।
फिर हंसा दुर्योधन, बोला नहीं है ये कोई भयानक दृष्य
कलयुगी बलशाली ऊपर से है, जाते हैं ये प्रतिदिन जिम।
साधा अर्जुन ने गांडीव सहसा ,नेत्रों में राधेय के आग
पर बाण दगने से ही पहले,
जैसे विषधर पर झपटे बाज
अचेत हो गिरे वफादार,
गद्दार सुदामा के द्वारपाल
दंग रह गए धनुर्धर देख दुर्योधन की प्रत्येक चाल।
मिला सुदामा सामने जब सहसा पार्थ ने साधा तीर
कर्ण की भी प्रत्यंशा सजग
था तो वह भी अजेय वीर।
तभी जनता के सारे संत बोले हम भी कुछ कर जाएंगे
अगर मरे नेता सुदामा हम सब साथ साथ मर जायेंगे।
बोला कर्ण ये तो हैं माधव के भक्त इनका मरना उचित नहीं।
अर्जुन बोले भक्त वत्सल हैं भगवन , इनको मारना धर्म नहीं।
दुर्योधन तब बोला जनता से , सारा पैसा बंट जाएगा ,
सुदामा जैसा महान नेता
आपमे से ही दोबारा चुना जाएगा।
आधी भीड़ गायब हुई
आधी आपस में लड़ गयी।
सेक्युलर ने विचार रक्खे
कट्टर भीड अड़ गयी।
अवसर देख भयभीत सुदामा
फिर से चंगुल में आ गया
दुर्योधन ने स्वयं जा कर कृष्ण को छुड़ा लिया।
कौंतेय कर्ण गरजे “गद्दार तेरा अंत हुआ”
पर कृष्ण थोड़ा मुस्काये दुर्योधन ने भी इशारा किया
अर्जून ने मारा तीर तिजोरी पे , कर्ण ने सारा धन भस्म किया।
इन चारों ने प्रस्थान किया, जनता बोली सुदामा ने बर्बाद किया।
जनता बोली
तिजोरी का पैसा खाया
हम सबको नीलाम किया।
वही सुदामा जो नेता था
उसी जनता ने सुदामा
अपने नेता पर वार किया
लाठी से डंडो से बार बार किया सौ बार किया।
मरा सुदामा बुरी मौत
तिजोरी भी नहीं मिली
ऊपर कृष्ण ,अर्जून , कर्ण संग दुर्योधन में बात हुई।
बोले अर्जून, हे केशव इस युग मे तो दुर्योधन ही भगवान हैं
हंसा दुर्योधन, बोला नहीं धनंजय यह इनका गुलाम अवतार है
इस कलयुग में पैसे और कपटी पासे ही हथियार हैं
हम हीरो विलेन बदल गए , पर भगवान तो भगवान हैं।