Poetry & Songs

अर्जुन शिवम्

मौन गुरुवर, मौन पितामह, लब लब आंसू पी जाते थे l
आज भोले नाथ नहीं, महारूद्र बहुत याद आते थेl

थे बोले केशव ये धर्मयुद्ध है महाकाल को साधो तुम l

रावण लाया था चन्द्रहास, पशु-Pataastr धनज्जय लायो तुम l

खड़ा तीरों पर देखो देखो
ये कौन तपस्वी दमकता है?
हर हर बम, के महा नाद में, कितना ओजस्वी दिखता है l

नहीं नहीं ये निरीह बिप्र
ये योद्धा बड़ा विकराल है,
सखा कृष्ण का द्वेता में
ये नर नारायण अवतार है l

अरे फिर नेत्रों से इसके
बेहता क्यों ये अविरल नीर,
मित्र स्वयं भगवान् कृष्ण का
ये है अतुलित अर्जुन वीर l

हर कसौटी पर अजय ये
पासों से पर हार गया l
जीती इसने याग्यसेनी
पर आज्ञा हेतु बाँट दिया l
कुटिल हंसी वो खिचता चीर विगत छल दिखलाता था l
उधर कर्ण सा शूरवीर
दिग्विजय लेहराता था l

नारायण का सखा स्वयं आज गला गला सा जाता था l
कभी मारूत के हलके झोंके
ये हिला हिला सा जाता था l

योग करें या युद्ध लड़े जब ऐसे नर रो देते हैँ l
शिव की आँखों से भी देखो
सिंधु सहस्त्र बह जाते हैंl

अरे, तभी कुछ शोर हुआ
कानन समस्त डगमगा गया
दानव ऐसा एक टूट पड़ा
बचो बचो का शोर हुआ l

राजकुमार तो जनहित hoga
ध्यान अर्जुन नें तोड़ दिया l
टांकारा गाण्डीव निमिष वार में दानव पपल में ढेर हुआ l

पर उस वृशिक के साथ साथ
एक महा वृशिक था धसा हुआ l
काऊंते के समीप देखो
एक आखेटक था खड़ा हुआ l
जाने फिर उन दोनों में पता नहीं क्या खूब हुआ l
लोहु लोहित हथियारों से
आपस में भीषण युद्ध हुआ l

कहाँ अर्जुन कहाँ ये छोटू
पर वो युद्ध भी क्या खूब हुआ l
आखेटक ऐसे लड़ रहा
मानो पिता पुत्र से खेल रहा l

पर अर्जुन तो फिर अर्जुन है
हठ आखिर दिखला दिया l
नहीं चला जब बस रिपु पर तो वैष्णव -आस्त्र सीधा दाग़ दिया l

कुसुम बन गिरा वो तीर
हिल उठा समस्त अम्बर l
साधु साधु कहा अर्जुन ने,
अरे ये हैं शिव शंकर l

धरा -धमक बजरंगी नाहर
अरे कैसे पागल सा कूद गया,
शम्भू -शम्भू हर- हर शम्भू
कैसे चरणों अर्जुन लोट गया l
कागज़ की किश्ती सामान वो ज्वार भटे सा डोल गया,
हर हर हर महादेव कैसे देखो
शिव सिंधु में डूब गया l

भोले भी तो भोले हैं आखिर वो भी रोते हैं l
लब लब पानी बहता है,
मात्र भगवान-भक्त जब होते हैं l

मौन महा मूल्यवान है
शब्दों की सामर्थ कहाँ l
देखा मैंने मेरा अर्जुन
यहाँ- वहां अब कहाँ रहा?

हाँ भगवान भक्त में जाने कब तक वार्ता तो क्या खूब हुई,
एक छोड़ भगवान कृष्ण को श्रवण किसी को हुई नहीl

बोले वो, जिसने वामन बन
आकाश धरा सब नाप दिया था l
बोले मुझसे, जिसने छोटु हित हिरनयकाशीपु को फाड़ दिया थाl

क्रूर हो जाये समय ये जितना हिसाब तो होता ही है l
फिसल जाए कर से सब कुछ पशुपतास्त्र तो मिलता ही है l
सूत्र बस ये मुझको तुमको
बना जाता है देखो बज्र,
“सर्व धर्मन्य परिताज्य,
मामेकाम शरणम् व्रज ” l

आयुष रंजन तिवारी

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